कुछ नाते बनते हैं, कितने कोमल संवेदी,
पल में खिलते कुम्हलाते, सपन्दित ऐसे सोई ।
पल में खिलते कुम्हलाते, सपन्दित ऐसे सोई ।
लगते ही कैसी भी, थोड़ी सी भी चुप्पी,
आशंका होने लगती है, जाने वो कैसी कैसी।
आशंका होने लगती है, जाने वो कैसी कैसी।
जी अकुलाने लगता है, ऐसी भी क्या मज़बूरी,
उत्कंठा होने लगती है, कुशल-क्षेम पा लेने की।
उत्कंठा होने लगती है, कुशल-क्षेम पा लेने की।
सम्बल मिलता रहता है, होती ऐसी पूछाताछी,
फिर एक भरोसा मिलता है, पोढ़ी दुनिया मीतों वाली।
फिर एक भरोसा मिलता है, पोढ़ी दुनिया मीतों वाली।
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