Sunday, June 28, 2015

पवन ऐसा डोलै : अध्याय ४. ५

पारीमल - भारीमल


चना चबैना चबाते गोठनी के शिक्षक ने जहां से खरवार कथा छोड़ी थी वहीँ से उठा ली -  

'राजा मदन शाह नामक खरवार राजा जब बुढा गए तो उनको बड़ी चिंता व्याप गई कि स्वयम तो हत-पौरुख भए और राजकुमार अभी बालक हैं, अब अरना भैंसा का बली कउन देगा।   

इसी समय द्वारपाल ने राजा को सूचना दी - कुछ बीर दुआरे पर आए हैं, कहते हैं - लोहे की तलवार तो क्या हमार रेंगवे काठे की तरवार से अरने की बली चढ़ाय दें।  

राजा ने सुना तो अचरज में पड़ गया - ऐसा चमत्कार भी कोई कर सकता है क्या ? 
उसने राजाज्ञा सुना दी - काठ की तलवार से कोई बली चढ़ाय दे तो आधो-आध राज-पाट उसके नाम औ राजकन्या दान में। औ, जो न कर पाया तो मूडी कलम।  

द्वार पर आए बीरों का जत्था आया रहा महोबा के बीर चन्देलों का। उनमें रहे दू ठे रेखिया उठान भाई परिमल ओ भारीमल, बहुतै रूपवान औ प्रतापी। इन्हीं के दम पर अनहोनी को होनी करने की ठानी गई थी।  

राजा ने बन में से एक अरना पकड़ मंगवाया।  
दूर पास के गांवों के देवी-भक्त उमड़ पड़े। कोल, गोंड,  चेरों, बैगा, धारकार, भुइंहार, आदमी-औरत का रेला लग गया। 
दोनों राजकुमार बीर बाने में महिष बध को उतावले हुए जाते।  
उधर जुटान के मन में एक्कै सवाल - काठे की तलवार से भैंसा की बली !!!!!!!!!!

बड़के कुमार ने काठ की तलवार के एक ही झटके में आशंकाओं की भारी भीत ढहा दी।  
काठ की तलवार से लोहू टपकै टप टप। अरना का मुख देवी के चरन में लोटै।  
देखै वाले देखतै रहि गए। 
रजवौ देखै हैरान।  
बनवासिन कै जयकरा से धरती असमान कंपकपाय गइल। 

पारीमल-भारीमल अगोरी-राज से आधा राज पाए और मदनशाह की कन्याएं उनसे बियाही गयीं। कुपित खरवार राजकुमारों को यह सब जमा नहीं तो बलपूर्वक उनका हीसा लेने की कोशिश की लेकिन चंदेल कुमार ओन्हनौ के मुआए देहलैं। इस तरह पूरा अगोरी राज पर चन्देल सत्ता कायम हो गइल।'


लोक परम्परा में चन्देलों के अगोरी राज पर काबिज होने की दूसरी ही कहानी साथ चल रहे पढ़े-लिखे रूदन खरवार ने सुनाई - 

'महोबा से हार कर भागे चन्देल अगोरी के राजा मदनशाह की शरन में चाकरी करने लगे। अपने साहस के बल पर ओनहन के राज दरबार में अपनी पैठ बैठाते सेना में बड़ा ओहदा पाते देर ना भई। खरवार राजकुमारियाँ पारीमल-भारीमल के रूप पर रीझ गइलीं। राजा ख़ुसी खुसी ओन कर बियाह करि देहलें। ओहर राजा बूढ़ हो के माचा धै लेहलन तो पढ़े बदे बनारस रहै वाले खरवार राज कुमारन के राज-पाट सौंपे के बोलवाए के हरकारा भेजले। 
चलाक चंदेल मौक़ा लखि के खोट कइलें। आन्हर-बहिर राजा के सामने पारीमल-भारीमल के खड़ा कै के कहि देहलें कि राजकुमार आय गइलें।  राजा अपने लइकन के धोखा में ओन कर राज तिलक कै देहलन।' 

अब तक चुप्पी लगाए ध्यान साधे सुन रहे कुंवर ने अपनी टीप लगाई - 

'हूँ ! तो ये दोनों परम्पराएं इस इलाके में सत्ता की लड़ाई में शामिल चन्देलों और खरवारों के अलग अलग पक्षों की देन हैं। असलियत दूनों के बीच कहूँ होइहै।'

------------     

No comments:

Post a Comment