Monday, January 6, 2014

गंगा उतरैं तारनहार


गुरुकुल टूटे गाँवन क्यार,

सत्यानास ऊंच दरबार।

शोध भवा सब बंटाधार, 
नंबर दुइ की हिंयौ बयार।  

पैसा बरसै ज्यौं रसधार,
धन्य धन्य शिक्षा जगतार।

सेमिनार की जय जय कार, 
ए पी आई की दरकार। 

साल भरे मा मेला चार,
गाल बजावै सब बाज़ार। 

सरस्वती झंकृत सब व्वार, 
दीप जलाएं अलम्बरदार।   

बैठि मंच पंचम आचार,
माला शोभै कंठ अपार।  

कथा सुनावैं गांठि पगार,  
मानौ बरम्हा भे साकार।  

वहै कहानी बारम बार,
नींद समाए आँखिन क्वार।  

पेपर छपि गा कूड़ा झार, 
नम्बर पइहौ पूरम पार। 

आई एस एन एन है यार, 
आई एस बी एन भरमार।   

हलि पावैं बस बिदयागार,
बाढैं दिन दूना निशि चार।

कइसे लागी बेड़ा पार, 
जित द्याखौ  तित बंटाधार। 

सबै नास करिहैं करतार,
आपहि रचैं नया संसार।   

याकै 'आसु' जियावै धार,
गंगा उतरैं तारनहार।

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