Wednesday, February 14, 2018

'टसकै टेस'

Published by Rakesh Tewari8 hrs
'टसकै टेस'

अल्हड़ तब अलमस्त विचरता ,
हिम मण्डित शिखरों के पार।
बुनता रचता सपनों वाला,
रूमानी कित कित संसार।
आसमान में उड़ता रहता,
कभी समंदर भरा उदास।
बाहर दीखै समथर जितना ,
भीतर उतना ही भूचाल।
तलब तबै की छुड़ा न पाया,
भभक उठै जस मूंदी आंच।
जब आवै यह चटक महीना,
टसकै टेस गवावै फाग !!!

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दोस्तों के नाम।
कोई पहचानता है इन्हें !!!!

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