'टसकै टेस'
अल्हड़ तब अलमस्त विचरता ,
हिम मण्डित शिखरों के पार।
हिम मण्डित शिखरों के पार।
बुनता रचता सपनों वाला,
रूमानी कित कित संसार।
रूमानी कित कित संसार।
आसमान में उड़ता रहता,
कभी समंदर भरा उदास।
कभी समंदर भरा उदास।
बाहर दीखै समथर जितना ,
भीतर उतना ही भूचाल।
भीतर उतना ही भूचाल।
तलब तबै की छुड़ा न पाया,
भभक उठै जस मूंदी आंच।
भभक उठै जस मूंदी आंच।
जब आवै यह चटक महीना,
टसकै टेस गवावै फाग !!!
टसकै टेस गवावै फाग !!!
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दोस्तों के नाम।
कोई पहचानता है इन्हें !!!!
कोई पहचानता है इन्हें !!!!
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