Saturday, June 24, 2017

तीन तेरह का फेरा

तीन तेरह का फेरा
'तेरह' की बात आने पर बरबस ही भारत के यशश्वी प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई की याद आती है। बचपन से ही उनकी सादगी, हाज़िर जवाबी, लाजवाब भाषण-कला और लोक प्रियता की चर्चा सुनने का अवसर मिलता रहा, सीतापुर जिले में जन्म पाने और लम्बे समय तक लखनऊ निवास के संयोग से। जब कभी उनकी सभा की सूचना आती हजारों श्रोता अपने आप जुट जाते उनको देखने-सुनने।
एक बार हम लखनऊ रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पर किसी को छोड़ने गए थे, थोड़ी देर में बाजपेई जी अपने एक सहायक के साथ दिल्ली जाने के लिए आए। ट्रेन चलने में अभी कुछ देर थी इसलिए वे अपने डिब्बे के बाहर ही खड़े अनजान लड़कों से बात करने लगे। थोड़ी ही देर में उनमें ऐसी आत्मीयता बन गयी कि जब ट्रेन चली तो वे अनायास ही नारे लगाने लगे - 'देश का नेता कैसा हो, अटल बिहारी जैसा हो।'
आगे चल कर बाजपेई जी पहली बार 'तेरह' दिन के लिए देश के प्रधान मंत्री बने। उन्हीं दिनों वे लखनऊ के बेगम हज़रत महल पार्क में आयोजित सभा में बोलने आए। हम भी सुनने गए। वे बीच-बीच में सधे हुए जुमलों से लोगों को लुभाते-हंसाते बहुत ही तार्किक तरीके से अपने निराले अंदाज़ में बोल रहे थे। उसी रौ में उन्होंने अपने 'तेरह दिन' के कार्यकाल और 'तेरह' की संख्या के अशुभ कहे जाने पर मज़ेदार तंज कसते हुए जो दो लाइनें सुनाईं हमें हमेशा के लिए याद हो गयीं - 'तीन में ना तेरह में, राज करेंगे डेरा में।'
कहते हैं लोगों के जीवन से कुछ संख्याओं का बड़ा गहरा नाता रहता है। बाजपेई जी ने दूसरी बार 'तेरह अक्टूबर' को प्रधान मंत्री पद की शपथ ली, इस बार उनकी सरकार 'तेरह' महीने चली। उन्हीं के कार्यकाल में 'तेरह दिसम्बर' २००१ को लोकसभा पर आतंकी हमला हुआ।
यूं तो अपने जीवन से 'तीन-दो-पांच' से प्रायः साबके पड़ते रहे लेकिन यह एक महज इत्तिफाक ही है कि कुछ सन्दर्भों में 'तेरह तारीख' से भी विचित्र मेल हुआ। यह लिखते हुए पढ़ने वालों से एक गुजारिश करना ज़रूरी लग रहा कि भूल से भी कहीं यह न समझ लें कि अपनी तुलना बाजपेई जी से करने की धृष्टता कर रहा हूँ। उनका ज़िक्र तो सिर्फ और सिर्फ 'तेरह' का फेर समझाने के लिए कर रहा हूँ वरना कहाँ 'राजा भोज और कहाँ ------ धूर लोटना '।
अपने महकमे के सर्वौच्च पद पर चयनित हुआ '१३ मई २०१३' को। आगे लगे 'अड़ंगों दर अड़ंगों' के चलते पूरे एक बरस तक कुछ समझ नहीं आया कि ज्वाइन भी कर सकूंगा या नही। तय किया अब वहाँ की सोचना छोड़ो कोई और ठिकाना थामो। मौक़ा भी मिल गया लेकिन अचानक जाने कहाँ से 'तेरह' का ऐसा फेरा घूमा कि '१३ मई २०१४' को आज की सरकार बनने के कुछ ही दिन पहले कार्य-भार ग्रहण करने का मौक़ा पा गया। लेकिन 'तेरह' का फेरा फिर भी ऐसा लगा रहा कि पूरे कार्यकाल में बार बार सफाई देते बीता - सरकारों के फेरे और उनसे जुड़े नदी-नाव संयोगों की। अन्त तक यह फेरा लगता ही रहा, और देखिए तकनीकी तौर पर पिछले मई महीने की तेरह तारीख को मेरे अनुबंध की अवधि पूरी हो रही थी लेकिन उस दिन शनिवार का अवकाश होने की वजह से 'बारह' तारीख को ही कार्यभार सौंपने गया, लेकिन यह बात 'तेरह' को कत्तई गवारा नहीं हुई। उसे लगा कि आखिर इस बार इस मामले में उसके दखल के बिना कैसे फैसला हो सकता है। लिहाजा, कुछ समय के लिए मेरा कार्य-काल बढ़ गया, हम समझे अब कुछ महीने तो रहेगा ही। उधर 'तेरह' चुप नहीं बैठा, अपना फेरा चलाता रहा और मेरी बेदखली का फरमान ले कर '१३ जून' को आ धमका - यहाँ कहाँ घूम रहा है बन्दे, अब सरकारी नहीं अपने डेरे में राज कर।
जय हो 'तेरह के फेरे की।'
'तेरह' के इन फेरों के तजुर्बों ने बहुत कुछ दिखाया, सिखाया और समझाया। बहुत सी गलतियां करायीं, बहुत कुछ अच्छा भी कराया, बहुत सारी असलियतों से साबका कराया, गलत-सही रिश्तों कीपहचान करायी, ढेर सारी साँसतों-असमंजस-संदेहों में झुलाया। इन फेरों से पाला नहीं पड़ता तो ज़िंदगी के बहुत से रहस्यों पर पड़ा पर्दा नहीं उठ पाता, लम्बे समय में जेहन में संजोई सच्चाइयों और रूमानी तस्वीरों का सच कभी नहीं जान पाता। इन तजुर्बों और हासिल-हिसाब पर तफ्सील से लिखने का बहुत मन कर रहा है। यह जान कर करीबी दोस्त न केवल तुरन्त ही सब लिख डालने का दबाव बना रहे हैं, बल्की ख़ास तौर पर तल्ख़ तज़ुर्बों पर ही लिखने के लिए ज्यादा कह रह हैं। उन्हें समझाने के लिए एक बार फिर से बाजपेई जी और बाबू जी (पण्डित अमृत लाल नागर) की एकसा कही गयी बात सुनानी पड़ी - 'ज़िंदगी में कुछ ऐसी बातें होती हैं जिन्हें निजी ही रखना चाहिए।' हाँ, दूसरी बातों पर जरूर लिखेंगे, बहुत कुछ है लिखने बताने के लिए, लेकिन अभी नहीं। जिन्हे मेरे लिखने से वास्ता हो उन्हें मेरे 'कूलिंग ऑफ़ पीरियड' और 'तेरह के अगले फेरे' का इन्तिज़ार करना पडेगा।
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