'मनकही'
हो गयी जो भी खता,
जाने-अनजाने कहीं,
छोटे-बड़े आली-वली,
या फिर ज़माने से कहीं,
मांग कर माफ़ी चले.
ये राह इतनी ही रही।
जाने-अनजाने कहीं,
छोटे-बड़े आली-वली,
या फिर ज़माने से कहीं,
मांग कर माफ़ी चले.
ये राह इतनी ही रही।
इनने कही उनने कही,
सुनते रहे सबकी कही,
अब न कहना अपकही,
हम पर नहीं चुप्पी रही ,
जो करी तानाकशी,
हम भी करेंगे दिललगी।
सुनते रहे सबकी कही,
अब न कहना अपकही,
हम पर नहीं चुप्पी रही ,
जो करी तानाकशी,
हम भी करेंगे दिललगी।
हट गयी है बाड़ अपने,
दरमियानों की कहीं,
खुल गयी है गाँठ वो ,
खूंटे से थी लपटी हुई,
आ गयी है यह घड़ी,
उड़ती हुई फिरसे वही।
दरमियानों की कहीं,
खुल गयी है गाँठ वो ,
खूंटे से थी लपटी हुई,
आ गयी है यह घड़ी,
उड़ती हुई फिरसे वही।
हो चुकी अब चाकरी,
बंधने-बंधाने की कहीं,
बेबात के ही हर कहीं,
डुग्गी बजाने की कहीं,
अब और की मर्ज़ी नहीं,
अपनी चलेगी सब कहीं।
बंधने-बंधाने की कहीं,
बेबात के ही हर कहीं,
डुग्गी बजाने की कहीं,
अब और की मर्ज़ी नहीं,
अपनी चलेगी सब कहीं।
ना रही कोई फिकर,
उनकी ज़ुबानी की कहीं,
धर लेंगे कोई राह अब,
अपने ख्यालों की कहीं,
पसरो कहीं भी छाँह में,
पीपल की, पाकड़ की कहीं ।
उनकी ज़ुबानी की कहीं,
धर लेंगे कोई राह अब,
अपने ख्यालों की कहीं,
पसरो कहीं भी छाँह में,
पीपल की, पाकड़ की कहीं ।
अब लगेगी जो भली,
सीरत या सूरत जब कहीं,
ठहरेंगे उनकी ठौर पर, अब
इस गली या उस गली,
थोड़े ही दिन हैं हाथ में,
अब तो करेंगे मन कही।
सीरत या सूरत जब कहीं,
ठहरेंगे उनकी ठौर पर, अब
इस गली या उस गली,
थोड़े ही दिन हैं हाथ में,
अब तो करेंगे मन कही।
-----
No comments:
Post a Comment