Saturday, August 31, 2013

चल रहे

  चल रहे

१. 
रास्ता अब तो यहाँ, कोई नज़र आता नहीं 
लाख कसमें खा रहे, हमको यकीं आता नहीं। 

२. 
रहनुमा अपना यहाँ अब तो भला लगता नहीं,
बे-कटारी हाथ अब, आगे बढ़ा दिखता नहीं।  

३. 
है बाग़ वो ही, खेत वो, मंज़र मगर वैसा नहीं, 
आसमाँ नीला ही है, धरती मगर वैसी नही। 

४.
महसूल देते हर कदम, गड़हे खतम होते नहीं,
कितना झुकाएं सिर भला, बुत बने सुनते नहीं।   

५.
माफ़ है सब कुछ उन्हें जो पेट भर पाते नही, 
क्या करें उनका मगर खाते हुए छकते नहीं। 

६.
मजहब जुदा, बोली बंटी, है आदमी दिखता नहीं,
हैं जातियों में ज़ब्त हम, है मुल्क यूं बनता नही।  

७.
चल रहा यूं ही यहाँ अब दिल मगर लगता नही,
अपनी तिजारत के लिए बाज़ार अब सजता नहीं। 

८.
चलते चले हैं, चल रहे, जाएं कहाँ दिखता नहीं, 
मेले में हैं, कितने अकेले, अब सुकूं मिलता नहीं।

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