1.
कोई तो होगी मजबूरी,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
दरश हमारा, पा जाते,
बस, बरबस, मुस्काया करते।
मीत मानकर हम तो अपना,
हाथ बढ़ाया ही करते।
सोचा करते, साथ चलेंगे,
कदम कदम, साझा करते।
फिरभी आखिर नाहक तुमने,
कैसे तीर चला डाले ?
कोई तो मजबूरी होगी,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
२.
कोई तो होगी मजबूरी ,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
फेंके टुकड़ों के ऊपर,
कैसे मुंह मारा करते ?
अपने हाथों ही अपने,
घरमें आग लगा पाते ?
छुरी चलाते बेगुनाह पे,
नही तनिक भी सकुचाते ?
कोई तो होगी मजबूरी,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
३.
कोई तो होगी मजबूरी ,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
एक समय चूकेगी बाती,
खूब इसे जाना करते।
सारा जीवन हरी - हरे,
मंतर थे जपते रहते।
धरम, दीन, ईमान सभी,
चलती बिरिया, क्यों बदले ?
कोई तो होगी मजबूरी,
वरना ऐसा ! क्यों करते ?
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