आखिर ये बादल क्यों फटा
१.
सोच कर देखो ज़रा, आखिर ये बादल क्यों फटा,
पहाड़, उस प्रवाह में, तिनके की माफिक क्यों बहा ।
२.
सोचा था, ये सारा जहां, अपने हुनर से पा लिया,
फिर भला, तीरथ में वो, मंदिर में तेरे क्यों हुआ।
३.
भरता रहा, अपने करम से, आज वो फूटा घडा,
निगाह पर फिर भी भला, परदा तुम्हारे क्यों पड़ा।
४.
कुदरत को तब छेडा किया, मर्जी जो आई सो किया,
आँगन में आई, रेत से, क्यों इस तरह डरा हुआ।
५.
उन घटाओं को सदा, छलिया सा, क्यों छला किया,
देख लो, ये, किस तरह, पांसा यहाँ, उलटा पड़ा।
६.
चढ़ती सनक में, आप ही सदियों का सच, लांघा किया,
यक बक, भटकती मौत ने, अपना निवाला पा लिया।
७.
अपना ज़मीर, तोड़ कर, मिलता नही कुछ भी यहाँ,
उस पार सब सूखा हुआ, इस ओर है, गहरा कुँवा।
८.
दोनों कगारों को ढहा कर, क्यों किनारों पर चढा,
सागर से आगे ये पहाड़ों तक सुनामी क्यों उठा।
------
No comments:
Post a Comment