Monday, February 13, 2012

नहीं जानता है.


नहीं जानता है.

कहने को जो-जो, ये जी चाहता है, 
कहे उनसे कैसे, नहीं जानता है. 

कितना लिखा मैंने, उनके लिए है, 
सुनाएं उन्हें सब, वो जी चाहता है.  

मिलें उनसे कैसे, कहाँ, कब बदा है,
मेरी आरज़ू  का, यही इक सिला है.

कैसे ये रिश्ता, गहरा गया है,
मिलेंगे तो उनसे, यही जानना है.

जो लगता है मुझको, उन्हें भी लगा है?
उनसे यही हाल-ए-दिल जानना है. 

कभी  तो मिलेंगे, अगर ज़िंदगी है,
अगर, चल दिए, तो कहानी लिखी है. 

जो मेरे ज़हन में, समाया हुआ है,
पढ़ लेंगे इसमें, वो चुन-चुन लिखा है.  

समझ लें अगर, यूं ही किसने लिखा है?
पूनो का पूरा, उजाला खिला है.  
-----
(एक बहुत पुरानी बात) 

No comments:

Post a Comment