फागुन फिन बगराय
राकेश तिवारी
१.
फागुन फिन बगराय गा, सेमल उडि मड़राय,
महुआ गमकै गाम मा, तन उमगन न समाय.
२.
सरसों फूली ख्यात मा, पियरी अस लहराय,
फ्योंली पीली पाखियां, चुनि-चुनि द्वार सजाय.
३.
धार-खाल पर्वत चलें, चटके चटक बुरांस,
पीले-लाल लिबास से, सज गए हाट-बज़ार.
४.
बेला मा फूटे कल्ला अब, बौरन लागे आम,
भली हो गई भोर अब. लगै सुहानी सांझ.
५.
घाम गुलाबी अब लगै, सेंकत देंह जुड़ाय,
अलस तोड़ काया जगै, मनवा यवैं उड़ाय.
६.
पीपर पाती भूम पर, झन-मन झन-मन होय,
पत्ता चरमर पाँव तर, मरमर अन्तर मोय.
पत्ता चरमर पाँव तर, मरमर अन्तर मोय.
७.
पाकड़ कोपल सज गई, नीम गई पियराय,
राह तकत पौ फट अई, जोहत हिय हलकाय.
राह तकत पौ फट अई, जोहत हिय हलकाय.
८.
टेसू टहकै आंच अस, बहकन लागे पाँव,
चित चिनगारी फूटती, टिकै नहीं इक ठांव.
चित चिनगारी फूटती, टिकै नहीं इक ठांव.
९.
होलाष्टक अब लागि गै, मगन रमौ आनन्द,
आठहु सिद्धि सहजै मिलैं, रस छलकै मकरन्द.
आठहु सिद्धि सहजै मिलैं, रस छलकै मकरन्द.
१०.
वात ठुनकही डोलि गै, गै होरी नियराय,
भोर धीर रुनझुन बहै, घाम चढ़े दुलराय.
भोर धीर रुनझुन बहै, घाम चढ़े दुलराय.
११.
रेला उमड़ा टूट कर, यहु होली की ठेल,
'तत्कालौ' मिलता नहीं, और चलाओ रेल.
१२.
बिट्टो भी नौकरी करै, दूर शहर में बैठ,
नेकहि अब आवहि घरै, प्रान अटे अन्देश.
१३.
गुझिया परै कराह में, बबुआ ऐहैं फेर,
पाग पकैं घिव-दूध में, जियरा बदकै नेह.
१४.
चौमुहान रेंड़ी गड़ी, लक्कड़ धरैं जुटाय,
चूक्यौ जो याकौ घड़ी, पलकौ डरिहैं लाय.
चूक्यौ जो याकौ घड़ी, पलकौ डरिहैं लाय.
१५.
हरिनाकश्यपु पसरु गा, सारे जगु मा आज,
कौने बिधि मारैं मिटे, मन कै सब सन्ताप.
१६.
जात-धरम का नाम लै, चलै आजु दूकान,
फगुआ खेलौ साथु मिल, फिर द्याखौ आगाज़.
१७.
ऊ - -लाला छाँड़ो अबै, बारौ अब अल्लाय,
पाप काटि होरी जरै, मेटे सबै बलाय.
१८.
बहै फगुनहट मदिर मन, थिर जल लागै ज्वार,
दूर बजै जब ढोल-ढफ, हियरा मारै घात.
१९.
पुरहर चन्दा ऊँच भै, सागर उठै तरंग,
करिया, हरियर रंगि गै, रंगे सफेदा झक्क.
२०.
झूमत डोलत जग चलै, मारै फगुआ घोल,
लाल पियर रंग रचि रहैं, गोर-सवंर सब लोग.
२१.
गैल-गली सब डूबि गे, सतरन्गा सैलाब,
इन्द्रधनुष सुन्दर सजे, आनन् आनन् आन.
२२.
घेरि-घेरि मुसकाय कै, रगरैं रंग गहराय,
ऊपर ते ना ना करैं, मन ही मन हरसांय.
२३.
मधुर मद-भरा परब यहु, बुड़की मारौ बूड़,
बाल-युवा खेला करैं, जशन मनावैं बूढ़.
२४.
गारी गावत चाव से, बुरा न मानै कोय,
चुहलि करैं, ठट्ठा करैं, मीठ खवावैं तोय.
२५.
एक नज़र रंग डारि कै, भरी डगर में लूट,
बिन कपाट अर्गला लगे, फिर ना पाये छूट.
२६.
फागुन के रंग में भिने, बालापन में यार,
बरस बरस चटकैं खिलें, बहुरैं बारम्बार.
२७.
तन भीजा भा रँगमय, भीज बसन भरपूर,
इतर तरा रंग पाय कै, भीजा मगन मयूर.
२८.
हम खेलैं इस देश में, रंग बरसै उस देश,
चौबारे होरी अटे, वै सुमिरैं यहु देश.
२९.
अँग-अँग रँग रागि कै, अँगराग लपटाय,
अंकवरिया भरि-भरि मिलैं, होरी गले लगाय.
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