चौमासे में घूम
राकेश तिवारी
१.
ताल तलैया उफन बहै जब,
बरखा बरसै झूम, चौमासे में घूम.
तन उमगै, पीपर सम झमकै,
अब काहे मन सून, चौमासे में घूम.
२.
गरदा बईठा, घामौ थमिगा, उमगे जियरा झूर,
झरने सोते फूट बहें सब, नाचन लागे मोर,
पत्ता-पत्ता पानी-पानी,
चप-छप धारा धूम, चौमासे में घूम.
३.
झड़ी लगा कर बरसे बादल, सारी-सारी रात,
सुबह उठे तो डूबी पाईं, सब सडकें गुडगाँव,
चारों पहिये अड़े हुए, अब कैसे हो सब काम,
रेल-पेल दफ्तर जाने की, गए राग सब भूल, चौमासे में घूम.
४.
मोटी-मोटी घास मखमली, बुग्यालों के ठौर,
भांति-भांति के फूल खिले सब, छटा बनी चंहु ओर,
चरवाहन के बोल सुन पड़ें, भेड़न की है मौज,
डेरा-डंडा पीठ चढ़ाए, पहुंचे हर की दून, चौमासे में घूम.
५.
फूटे बादल वो पहाड़ पर, धरा दरकती आय,
पगिया-पगिया धार उमड़ती, ऊपर झर-झर बरसत जाय,
छोटी जोंकें मोटी पड़ गईं, चूस चूस कर खून,
पावन ऊपर पोत नून, फिर, चौमासे में घूम.
६.
भूमि धसकि मारग पर आई, रेला दुन्हू ओर,
भीजत-भाजत रपट रहे सब, तीरथ जाते लोग,
तनिकौ हिम्मत घटै न उनकी, पाथर-पानी हिम पूर,
बाबा केदार की धूम, चौमासे में घूम.
७.
ब्रह्म-फेण-हिम कमल खिल गए, धार पार उस ताल,
हिम्मत बांधौ , चढौ चढ़ाई, छीर-गंग कै साथ,
थिर हो घूमो, फूल जुटाओ, लौटो मगर दुपहरी तक,
बादल जो अट आए ऊपर, राह जाएगी भूल, चौमासे में घूम.
८.
आंधी आये, टपका बीनैं, झबियन आम बटोर,
मलिहाबादी फरी दशहरी, चौसा है चटखोर,
रत्नागिर के हापूस खाए, अल्फांजो बम्बइया,
अनन्नास हैं बड़े रसीले, मिलै शरीफा खूब, चौमासे में घूम.
९.
सकल धरा अब लील गई, कोसी मइया तट तोड़,
परती धरती, धूसर प्रांतर, पहले सूखा, अब बूड़,
मंगलूर में मची तबाही कारें चल दीं तैर,
कोंकड़ ऊपर बादल अटके, गई मुम्बई डूब, चौमासे में घूम.
१०.
अम्बर बरसै, धरती भीजै, नागराज निकसे बिल छोड़,
दादुर उचकैं, केंचुआ रेंगैं, रेंगा खेलैं कान्दों कूद,
कारोमंडल तट पर देखो, मची हुई है धूम,
सह्याद्री के आरी आरी, चौमासे में घूम.
११.
फूल रहे सागौन वनन में, आलस पैठै पोर,
बदरा चढ़-चढ़ आएं अटरिया, पुरवा मारै जोर,
डरु लागै, घन गरजन लागैं, अन्धियारा घनघोर,
अन्दर बाहर भीजत जाएं, फुहरा चलै अटूट, चौमासे में घूम.
१२.
गाँव सिमट आए तरुअन तर, बगिया गमकै भोर,
डालन पर अब झूले झूलैं, भटक रहे चितचोर,
सागर मचले, तट सर पटकै, उठै झाग झकझोर,
घाटी गहरी भरी उदासी, भीतर उठती हूक, चौमासे में घूम.
१३.
बरखा ऋतु आई, घरु मां बइठौ, वृथा बजावत गाल,
बिना चखे ही बता रहे सब, कडुआ लागै खांड,
बरखा आई बाहर निकरौ, पन्नी मा किताब लपटान,
दाबौ पैडल साइकिल ऎसी, फर-फर उछरै फर्रा मूड, चौमासे में घूम.
१४.
चहला वाले खेत जुत रहे, बगुलन की जेवनार,
रंग-बिरंगे लूगन वारी रोपन लागीं धान,
ऊदे-ऊदे लत्तन से अब आवन लागी बास,
अब निकसी, तब निकसी कैसी, सही न जाए धूप, चौमासे में घूम.
१५
छपरा ऊपर झम-झम ब्वालै, मानौ सगरा ढील,
म्याड़ कटी सब ख्यात याकु भए, मटमैले भए ज्वात,
ग्वाड़न मां सब कीच सनै, जब पनही टँगि गै हाथ,
अर्राने सब गिरैं पनाले, बूंदन उठती धूम, चौमासे में घूम.
१६.
गरज लरज बदरा जब आवें, सुमिरन लागै देश,
गिरिजा देवी कजरी गावें, बरसन लागैं मेघ,
राग मल्हार हवा में डोलै, गूँज उठावैं बूँद,
बाटी- दाल चढ़ी चूल्हन पै, दरियन* जुटे हुजूम, चौमासे में घूम.
* दरी = झरना; दरियां: झरने
१७.
पीत बसन साजे सब न्यारे, तीरथ-जल काँधे पर धारे, कांवरियों की रेल,
सजे शिवालय मची हुई अब, चप-चप हेलम हेल,
गंगाधारी शिव के ऊपर चढ़ा रहे हैं नीर,
बोल बम, बोल बम, बम-बम बोल, छान छान कर झूम, चौमासे में घूम.
१८.
मूड़ उठाए चढ़ती लतरैं, चूमन चलीं अकाश,
भांति-भांति बन बिरवा मह्कैं, कुंजन बसी उजास,
डालन पर पंछी जब कूजैं, कोयल मारे कूक,
हाथी के हौदे पर घूमैं, पीलवान की हूल, चौमासे में घूम.
१९.
गाँव-गलिन में कीचड़ अटिगा, आवन-जावन गेडिन* पै,
हरे भरे उपवन सब हो गए, हरे भरे वन कोशल** कै,
सैलानी अब इनके अन्दर, नहीं सकेंगे गूंठ,
जंगल के दरवाज़े तक ही, अभी सकेंगे सूंघ, चौमासे में घूम..
*गेडिन (गेड़ी) = छतीसगढ़ के गांवों में बरसात में प्रयोग किया जाने वाले बांस की विशिष्ट बैसाखियाँ जिससे पैर में कीचड़ न लगे; ** कोशल (दक्षिण कोशल) आज का छत्तीसगढ़.
२०.
कान्हा-किसली, बांधवगढ़, सब बंद हुए चौमास,
काँकड़ बोल रहे हैं बनमें, रुकी हुई है सांस,
बाघ बना कर जोड़ा घूमें, मना रहे मधुमास,
लाल सुर्ख जलती आँखों से, हमें रहे हैं घूर, चौमासे में घूम.
२१.
आल्हा गावैं, धरती धमकैं, बुन्देलन के बोल,
खट-खट खट-खट तेगा बोलें, तलवारन के झोर,
उठि-उठि मुरदा लड़ने लागे, बाजन लागे ढोल,
मंदिर-मंदिर मची जवाबी, करतालन की जूझ, चौमासे में घूम.
२२.
पावस की बून्दैं परैं, पाहन शीतल होंय,
ढाक-पात 'पाठा' परे, हरियाले सब होंय,
झरने झर-झर लट रहे, अरी-अरी सब ओर,
'चरखारी' गढ़ अटि लखैं, धरा हरी जल पूर, चौमासे में घूम.
२३.
जहां तहां मन्नाय रही, चम्बिल मइया अफनान,
क्वारी, सींध, पहूंज, बेतवा, केन चढ़ीं उन्मान,
रूखे तन कोमल भए, मनभावन भए गान,
इतै-उतै फाहैं लड़ें, ओरछा-सागर-कूट, चौमासे में घूम.
२४.
तमसा-तल उपरै चलै, केंवटी-कूँड़ धसान,
भरी महाना लरजि गै, बिरही मचली रिसियान,
'मैहर माता' माथ धर 'विन्ध्यवासिनी' धूर,
कालिंजर-गढ़ चढ़ चलौ, नीलकंठ लो पूज, चौमासे में घूम.
२५.
घाट घूम लो, पर्वत घूमौ, घूमौ वन मैदान.
अरझि-अरझि बहकें जब बदरा, रंग धानी बहु आन.
धारा-धार उमड़तै आवै, घूमौ भीज जहान.
जब लै दपकै त्वरा हीय मैं, घूम, मचा के धूम, चौमासे में घूम.
कूड़ा-करकट बजबजान अब, नरिया अडसी जाय,
राह फूट सब गडहा होइ गै, गोड़ धरे सनि जांय,
गुठलिन मैं अब कल्ला फूटैं, पौध उग रही घूर,
गाँव देश जब ऊब जगावें, सैर करो सब दूर, चौमासे में घूम.
३०.
बहना बांधै रछा-बंधन और ठुंसावै मीठ,
बंधै कलावा हाथ मैं, राजा बलि अब दीठ,
भारत मां कातर भईं, द्याखैं वीरन व्वार,
मनबढ़ सगरे मर मिटैं, अस बरसौ अब टूट, चौमासे में घूम.
३१.
सावन झूला झूलते, सीय-राम संग सँग,
सरयू तीरे सज गये, सब मेले के रंग,
सीय-राम धुन बाजती, रिमझिम परै फुहार,
अवधपुरी में रच बसौ, रचै सुहावन सूख, चौमासे में घूम.
३२.
निशि पूनो छिटकी खिली, कैसी भली उजास,
रजनीकर पियरे परे, काहे भला उदास,
फरहर मन फरकत फिरै, जस बदरा बरसात,
घेरि घेरि घन वै झरैं, सुधि घेरै बंधि खूंट, चौमासे में घूम.
३३.
भादौं बरसै टूटि कै, झ्वान्का मारै वात,
पक्कयौ घरु टपकन लगे, कच्चन की क्या बात,
छपरा गलि भुइं पर चुवैं, उडि नहि सकैं जहाज,
जल-जीवन एकै भए, पार उतरिहौ डूब, चौमासे में घूम.
३४.
हरियाली हो गईं करीलें, कदम फरैं फल-फूल,
बिरज बावरी मीरा नाची, देखै रूप अमोल,
बिरवन चढ़ें, धमाल मचावैं, गोपालन के टोल,
जय-जय राधे, कान्हा-राधे, ब्रजबासी जपते मन ड़ूब, चौमासे में घूम.
३५.
धाय-धाय अब धावा मारैं, शहरी बाल टपोर
गली-गली में मटकी लटकी, लगी टकटकी पूर,
कंध जोड़ सब घेर बनावैं, एक के ऊपर एक,
पारी पारा कोशिश करते, खिसके आते भूम, चौमासे में घूम.
३६. सब जन मिल उकसाय रहे अब, ना मटकी अति दूर,
अबकी बेरिया पाओ आओ, उचकौ अब भरपूर,
यहु देखौ फिर चढ़ें कन्हाई, बांधे पटिया माथ,
अब पायी, अब पायी, पायी, मटकी फोरी कूद, चौमासे में घूम.
३७.
घर-घर अन्दर मंदर सज गए, भज मन राधा बोल,
कैसी मोहक जसुदा माता, मोह रहे दधि-चोर,
उलटी धारा आजु चली बह, सज गए कारागार,
बंदी-रछक धन्य हो रहे, 'बंदीजन को पूज,' चौमासे में घूम.
हरियाली हो गईं करीलें, कदम फरैं फल-फूल,
बिरज बावरी मीरा नाची, देखै रूप अमोल,
बिरवन चढ़ें, धमाल मचावैं, गोपालन के टोल,
जय-जय राधे, कान्हा-राधे, ब्रजबासी जपते मन ड़ूब, चौमासे में घूम.
३५.
धाय-धाय अब धावा मारैं, शहरी बाल टपोर
गली-गली में मटकी लटकी, लगी टकटकी पूर,
कंध जोड़ सब घेर बनावैं, एक के ऊपर एक,
पारी पारा कोशिश करते, खिसके आते भूम, चौमासे में घूम.
३६. सब जन मिल उकसाय रहे अब, ना मटकी अति दूर,
अबकी बेरिया पाओ आओ, उचकौ अब भरपूर,
यहु देखौ फिर चढ़ें कन्हाई, बांधे पटिया माथ,
अब पायी, अब पायी, पायी, मटकी फोरी कूद, चौमासे में घूम.
३७.
घर-घर अन्दर मंदर सज गए, भज मन राधा बोल,
कैसी मोहक जसुदा माता, मोह रहे दधि-चोर,
उलटी धारा आजु चली बह, सज गए कारागार,
बंदी-रछक धन्य हो रहे, 'बंदीजन को पूज,' चौमासे में घूम.
३८.
कारी घटा घिरी घनघोर, जमुना मारै फाहैं जोर,
तापे बिजुरी तडकै तड-तड, बरसै भद्रा झोर,
चरिह्यूं लंग जब घिरा अन्धेरा, लीन्ह कृष्ण अवतार,
कष्ट काट फिर करैं उजाला, उतरैं फिर से भूम, चौमासे में घूम.*
(* विशेष रूप से डॉ. अश्वनी अग्रवाल जी के लिए)
३९.
सूगा-पांखी धान अब, बगुला-पांखी कांस,
मकई मीठी अब फरै, छिटपुट बादर आस.
निकसौ छांहहि-छांह अब, सांझ-सबेरे घूम,
तीखी, तिरछी, बींधती, धुली खुली अब धूप, चौमासे में घूम.
४०.
करिया पाख औ कारे मेघा, हाथ न सूझै हाथ,
पता न लागा तुमहू अइहौ, वैसन अन्हरी राह,
भूले से तनिकै टकराए, काहे ऐसन तूल,
फ़िरहू फिर बरखा रितु आई, लिह्यौ वसूल ब्याज मय सूद, चौमासे में घूम.
४१.
बरखा मा व्यवधान कछु, कृषक गए अकुलाय,
हरे धान जब ख्यात मा, लगे तनुक कुम्हलाय,
कस ब्वावैं सरसों अबै, पुरवौ सूख पटान,
उठै आंखि बदरा तकैं, बरसौ हथिया झूल, चौमासे में घूम.
४२.
मनभावन अति रामगिरि, पठवै यछ सन्देश,
विदिशा विन्ध्य गुहा लखौ, मालव दशपुर देश .
कुरुछेत्र कनखल रमौ, क्रौंच रंध्र कै पार,
अलकापुरी सुहावनी, उड़ो मेघ सम दूत, चौमासे में घूम.
४३.
कालिदास बरनी छटा, छक चौमासा साम,
लहलह वन महमह करैं, वेत्रवती तट आन,
मद आलस गज डोलते, बगुला बांधें पांत,
उलटि अलक ऊपर तकैं, काढि नयन उठि कूट, चौमासे में घूम.*
44.
तल-अवतल पुरखा तिरैं, पितर पाख भुइं ओर,
बरखा प्यास बुझै नहीं, तरपौ अंजुरी रोज़.
गया चलौ, नैमिष चलौ, पूजौ पिंडा पूर,
इक दिन पंछी उडि चलै, गंग तरैं सब फूल, चौमासे में घूम.
४५.
बाढें दिन चौमास कै, बाढ़े हिय अनुराग,
जैसे बाढें लतर वन, तिन्नी बाढ़े ताल,
बिरही सुमिरै दिन गिनै, पाले मन में आस,
लपकौ अरबर मेघ अब, वै बैठे हैं रूठ, चौमासे में घूम.
४६.
खिलै कुमुदुनी खाल मा, विहसन लागें चन्द्र,
घाम चुभै घमसाए कै, भूख परै अब मन्द,
नरिया बाँध बझावैं मछरी तडकैं जालहि ताल,
गाँवन मा अब दिखै नज़ारा, लरिकन कै करतूत, चौमासे में घूम.
४७.
हरसिंगार फूलैं संझा भर, भोर बिछें भू पाट,
झिलमिल झलकै घास पर, किरण परे उडि जात,
ठुनक धरे पछुआ चलै, घट-घर देवी आन,
गुड़-घिव समिधा में परैं, गमक उडै जग धूम्र, चौमासे में घूम.
४८.
चौमासे मा जनम भा, फिर कैसे रहि जाय,
दस्तक देवै मेघ जब, पाँवन शनि चढ़ जांय,
गठरी लादे पीठ पर, बह्कैं नदिया कूल,
खेमा डारैं रात में, दुसरै दिन फिर कूच, चौमासे में घूम.
४९.
दुर्गा पूजा सज गई, लीला राम अपार,
नौ रातैं, दशमी चलै, महिष दशानन मार,
उड़न खटोला सम उडै, शीतल मन्द बयार,
महकै धान बिहान में, महकै माटी मूल, चौमासे में घूम.
५० .
औघर दानी अस जियैं, जस चौमासे मेह,
तपैं जरैं बादर बनें, बरसु लुटावैं आपु,
उमडि घुमडि सब उलटि कै, भरैं खेत खलिहान,
प्रान भरैं सब जीव में, बाढें सब धन पूत, चौमासे में घूम.
५१.
चौमासे भरि कंठ पिया, अबौ अपूरित प्यास,रस पीवन जो हम चले, भरी नहीं वहु आस,अगली बिरिया फिर चलब, बह्कब देश जवार,शायद तबकी छक सकैं, वहै अपूरब घूँट, चौमासे में घूम.क्रमशः
५२. (अंतिम कड़ी)
चौमासा चौपर्ति गा, चन्दा चितवत आय,
चन्द्र-किरन अब चूमि कै, पायस अमरित पाय,
थोरै दिन की कसरू है, देव उठेंगे सूत,
चरन छुऐं सब मीत कै. अब धारैं हम चूप,
------------ नमस्कार ----------
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