सोच रहे अब बहुत हुआ
चुपचाप कहीं अब खो जाएं ।
चुपचाप कहीं अब खो जाएं ।
सूना-सूना भीतर उभरे,
ठौर न अब कोई भाए,
रह रह कर जीवन भरमाए,
भूला भूला अब मग भटकाए।
पात झरे तन सूखा जाए,
पल पल अब कुम्हलाता जाए ।
चल अब, ठीहे ओर उड़ें,
उड़ते उड़ते उस पार चलें।
क्या सोचें, क्या खोए-पाए !
चलें अनत में खप जाएं ।
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