Sunday, January 21, 2024

चलें अनत में खप जाएं ।

सोच रहे अब बहुत हुआ
चुपचाप कहीं अब खो जाएं ।

सूना-सूना भीतर उभरे, 
ठौर न अब कोई भाए,

रह रह कर जीवन भरमाए,
भूला भूला अब  मग भटकाए।

पात झरे तन सूखा जाए, 
पल पल अब कुम्हलाता जाए ।

चल अब, ठीहे ओर उड़ें,  
उड़ते उड़ते उस पार चलें। 

क्या सोचें, क्या खोए-पाए !
चलें अनत में खप जाएं ।

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