Explorer's Blog
Sunday, July 31, 2022
मंज़ूर-ए-खुदा न हुआ
समझा फ़साना ख़त्म होने को आया,
इक नई कहानी का पन्ना खुल गया।
सोचा किनारा पा लिया है अब तो,
ढह कर किनारा धार में बहने लगा।
जो जो सोचा बहुत पूरा हुआ,
नहीं हुआ जो मंज़ूर-ए-खुदा न हुआ।
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