Rakesh Tewari
गुन-गुनाने का
भोरहरी शरद की आयी, खिला है झाड़ चम्पा का,
झरे हैं फूल धरती पर, करें सिंगार देहरी का।
झरे हैं फूल धरती पर, करें सिंगार देहरी का।
चहलकदमी को मन मचले, गलीचा नरम दूर्वा का,
झलकती शीत की चादर पे तलुए गुदगुदाने का।
झलकती शीत की चादर पे तलुए गुदगुदाने का।
हवा में ठंढ की खुनकी, अगौना नए मौसम का,
ठुनकती धूप से बचते बचाते घूम आने का।
ठुनकती धूप से बचते बचाते घूम आने का।
घुला है ज़हन में ऐसा, नशा सा खुशगवारी का,
बना है वक्त ही ऐसा तनिक सा टहल जाने का।
बना है वक्त ही ऐसा तनिक सा टहल जाने का।
बहाना कोई बनना चाहिए, बस बात करने का,
दबे क़दमों की आहट में, गमकते बोल सुनने का।
दबे क़दमों की आहट में, गमकते बोल सुनने का।
कि, मौक़ा कोई मिलना चाहिए बाज़ू में चलने का,
करीब आते हुए थोड़ा सा यूं ही गुन-गुनाने का।
करीब आते हुए थोड़ा सा यूं ही गुन-गुनाने का।
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