--- सूफियाना क्या ???
१.
इसी धरती पे जनमे हैं,
कि आदमजात खालिस हम,
कि जीते हैं ज़माने में,
कि हमसे फकीराना क्या।
इसी धरती पे जनमे हैं,
कि आदमजात खालिस हम,
कि जीते हैं ज़माने में,
कि हमसे फकीराना क्या।
२. बसे हैं अपनी मढिया में,
बजाते बेसुरा भी हम,
न पाप-ओ-पुण्य देखे हैं,
कि हमसे रहीमाना क्या।
बजाते बेसुरा भी हम,
न पाप-ओ-पुण्य देखे हैं,
कि हमसे रहीमाना क्या।
३. गिरे तो रो के उठते हैं,
ख़ुशी में खिलखिलाते हम,
बने हैं हांड़ माटी के,
कि हमसे कबीराना क्या।
ख़ुशी में खिलखिलाते हम,
बने हैं हांड़ माटी के,
कि हमसे कबीराना क्या।
कि हमसे मसीहाना क्या,
नहीं बाना धरा गेरुआ,
कि हमसे जोगियाना क्या।
५. रपटते फिर रहे पनही,
बजाते चाकरी हैं हम,
पहनते मोह का चोला,
कि हमसे रामनामा क्या।
६. जरा सा गौर से देखो,
असल क्या अक्स रखते हम,
कि रागो-ओ-रंज में रमते,
कि हमसे मलंगाना क्या।
७, जिलाए आग जीते हैं,
कि फिर धूनी रमाना क्या,
कि बहते चल रहे हैं हम,
कि हमसे फक्कड़ाना क्या।
८. जिधर देखा उधर लहके,
बहकते चल रहे हैं हम,
तनिक रहते सलीके से,
कि हमसे शरीफाना क्या।
९. न समझो हमको बैरागी,
सरासर दुनिया वाले हम,
नशे-मन हम तो रहते हैं,
कि हमसे सूफियाना क्या।
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