कुस्तुनतुनिया
पिछले मई महीने में कुस्तुनतुनिया (टर्की) जाने का मौक़ा मिलने पर दो चार लाइनें लिखी - दूर देश की उस सरहद पर पूरब का दर खुलता है,
जादू वाला एक शहर भी, उस मुकाम पर बसता है।
दादा-दादी, नाना-नानी के किस्सों में रमता है,
कुस्तुनतुनिया नाम निराला कब से रहा लुभाता है।
किस्मत ने फिर अपनी सुन ली, न्योता दे बुलवाया है,
इस बखरी की खटपट छोड़ो, वहाँ नज़ारा न्यारा है।
तब सोचा था कि देखा-सुना दोस्तों से साझा करूंगा लेकिन लौट कर नए झमेलों में उलझ कर अटक-अटक कर ही कुछ लिख पाया।
अगर बसियौटा ना लगे तो थोड़ा थोड़ा कर के अब बयां कर दूँ।
जादू वाला एक शहर भी, उस मुकाम पर बसता है।
दादा-दादी, नाना-नानी के किस्सों में रमता है,
कुस्तुनतुनिया नाम निराला कब से रहा लुभाता है।
किस्मत ने फिर अपनी सुन ली, न्योता दे बुलवाया है,
इस बखरी की खटपट छोड़ो, वहाँ नज़ारा न्यारा है।
तब सोचा था कि देखा-सुना दोस्तों से साझा करूंगा लेकिन लौट कर नए झमेलों में उलझ कर अटक-अटक कर ही कुछ लिख पाया।
अगर बसियौटा ना लगे तो थोड़ा थोड़ा कर के अब बयां कर दूँ।
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