सुनी कही बस यही कहानी
घर के भीतर ही, कितनी दीवारें होती हैं,
रोज़ रोज़ ही, बड़ी बड़ी सी उठती जाती हैं।
इक चूल्हे पर चढ़ती बटुली साझा पकती है,
चूल्हे चूल्हे चढ़ती बटुली बुदबुद करती हैं।
मेड़ी मेड़ी खेतों की पैमाइश होती है,
बढतीं जितनी उतनी कम पैदाइश होती है।
बचपन में जो पढ़ी कहानी भूली जाती है,
एक एक कर लकड़ी कैसे तोड़ी जाती है।
जाल लिए उड़ती चिड़ियों की टोली जाती है,
एक एक कर चिड़िया यूं ही पकड़ी जाती है।
सुनी कही बस यही कहानी हमने जानी है,
बड़ी लड़ाई साथ साथ ही जीती जाती है।
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