उज्जर होरी
१.
एहि फागुन बाउर भए, देखौ खेलैं रंग,
उज्जर झोरी रंग की, उज्जर थोपे अंग।
२.
काजर कोठरि धंसि रहे, पउडर थोपे गाल,
बनि हँसि होरी खेलते, झप्पी भरे गुलाल।
३.
सबै रंग परचम उड़ें, सबै रथन के मौर,
उज्जर उज्जर उच्चरहि, करिया दिल के कोर।
४.
जाति-पांति औ धरम की ढपली बाजै जोर,
मुंह में राम रहीम लै, छूरी साजे लोग।
५.
बहुरुपिया जो साल भर बदला करते रंग,
बदरंगी शोभन लगी, दल बदलत ही चंग।
६.
एहि बिरिया नारा लगै, हरिद्रोहिन कै नास,
सिंह बने नर आ रहे, सबको मिलिहै त्राण।
७.
बरस बरस बीता किए, होरी बारत भाय,
बार ना पाये होलिका, फगुआ होरी गाय।
८.
नए रूप राछस धरे, चढ़ि-चढ़ि गरजें मंच,
उनकी ही महिमा अही, बाजत हैं सब लंग।
९.
सब कोई सब कुछ लखै, मगर रंग की रीत,
बार-बार कालिख लगै, गले लगावैं रीझ।
१०.
काशी मथुरा अवध पुर, टेसू सेमल लाल, ,
होरी के रंग भीजते, खेलें रघुबर नन्दलाल।
११.
मन में उमगन फिर बहै, फागुन मारै जोर,
भला बुरा अलगाय कै, खेलेंगे फिर भोर।
-----
No comments:
Post a Comment