यूंही ज़माना चल रहा
1.
इस किनारे, पार उस, क्या देखता है तू ,
धार की रंगत अजब, तजबीजता है तू !
2.
मीत ही समझा किया, गुनता रहा जिन तू,
किस तरह आहत किया, अब सोचता है तू !
3.
साथ में चलता हुआ, फिर-फिर ठगा है तू ,
रिश्ते नही, रूपा ही सब, अब चौंकता है तू !
4.
आदत वही, वो ही चलन, ना छोड़ता है तू ,
फिर वैतलवा डाल पर, ज्यूँ डोलता है तू !
5.
सरकसी का मामला, समझा नहीं ये तू,
चढ़, वो नसेनी तोड़ते, नीचे रहा है तू !
6.
आँख का पानी मरा, क्या ढूँढता है तू,
अपने लिहाज़ों का नतीज़ा, भोगता है तू ! ,
7.
दोष उनका है कहाँ, क्यों रूसता है तू ,
यूंही ज़माना चल रहा, क्यों भूलता है तू !
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