Thursday, April 25, 2013

हवाल सब सुनाएंगे, क्या क्या हुआ किया


हवाल सब सुनाएंगे, क्या क्या हुआ किया  
२६ मार्च - २४ अप्रैल२०१३ 

1. 
बेड़ा चला था मौज में, दरयाव बढ़ गया,
अपनी कहानी ने नया, पन्ना पलट लिया।

2. 
डांड़ा हमारे हाथ से, सहसा छटक गया,
बेड़ा भटक के, आप के, रेते पे आ गया।     

3. 
बस में नहीं अपने रहा, लहरों ने ये किया, 
यूं ही करीब आप के, लमहों ने ला दिया।
  
4.   
बेकार बाज़ू हो गए, भंवरों ने ये किया,
ऐसा किया, ये जिस्म-ओ-जां, जख्मों से भर गया।  

5. 
अपना नहीं कुसूर कुछ, टसकन ने ये किया,
संदल की आस ने हमें, ये दर दिखा दिया। 

6. 
मिल कर जुदा होते गए, राहों ने ये किया, 
राग-ओ-कसक थमा दिया, आगे चला गया। 

7. 
हम तो महज चलते रहे, किस्मत ने तय किया, 
जिस ओर की चली हवा, उस ओर उड़ लिया। 

8. 
हमने न कुछ भला किया, न कुछ बुरा किया,
मंज़ूर-ए-दौर जो हुआ, उतना ही कर लिया । 

9.  
अपने ललाट  पे लिखा, वो पुन्य पा लिया,
पाप भी किया, मगर, दस्तूर भर किया। 

10. 
गीली जमीन पर अभी, कुछ ही कदम बने, 
उस ठौर पर, बालू चरो ने, घर बना लिया। 

11. 
दो-चार पल ही क्या मिले, सुध ही भुला गया,
इक कहानी, अनकही, सुन कर, सुला गया। 

12. 
हम तो संभल के होश में, आए, ये क्या किया, 
अपने मुकाम का पता,  तुमने बदल दिया।  

13. 
ना राज़ कुछ रहा, न राज़-ए-दार ही रहा,
बस्ती यही रही, मगर गुमनाम हो गया। 

14.
दावा नहीं रहा, न दावेदार ही रहा,
 तहरीर क्या लिखाएं, वो काजी चला गया। 

15. 
ना दूर हो सका, न बगलगीर ही हुआ,
अपने अकेले द्वीप का, संगीत हो गया। 

16
वक्त ने हमको यहाँ, क्या क्या दिखा दिया,
अपने अजाने अक्स का, दीदार पा लिया। 

17.
वक्त-ए-दौर वो भी था, हमको मिला गया,
इस सफ़र में आप का, रहबर बना दिया।  

18.  
बदला है वक्त-ए-दौर फिर, खेमा उखड़ गया, 
डेरा, पडेगा, अब कहाँ?  लो फिर भटक गया। 

-------

No comments:

Post a Comment