1
हमने भी कुछ पाप किये हैं,
ना करते तो क्या करते,
हम कोई भगवान् न उतरे,
मरयादा पर ही जीते ?
2
पाप पुन्यमय काया पाये,
झिलमिल दोनों लहराते,
जिए जनम भर डरते-डरते,
फिर भी कहाँ बरा पाये।
3
पूजा-पाठ, संग-सत्संग में,
तीरथ-घाट बहुत डूबे,
बने आस्तिक लेकिन फिर भी,
माया-मोह गले अरझे।
4
रेले मेले गाँव शहर के,
घूम टहल कितने देखे,
छोट बड़े सब पढ़े लिखे भी,
अलिन गलिन गाफिल देखे।
5.
फूल चुने चुन-चुन हमने,
पर कांटे भी संग ले आए,
पंचामृत अंजुरी से छीजे,
सुरा उसी में घुले मिले।
6
कितनी भी कोशिश कर ली,
पर लोभ-शोक नाहीं छूटे,
मानुष तन का धरम धरे,
चलते रहते गिरते-पड़ते।
7.
अमृत बरसे गंग-जमुन जल,
साधु जुटें संगम तीरे,
इसी कामना में हम जीते,
धरा तनिक सी तो उबरे।
8
लगे डुबकिया इसी मकर में
उब्ब डुब्ब बम बम बोले,
'भोले बाबा' अब तो जागें,
देश-धरम में आग लगे।
9.
ऊब चुके हैं धरम-करम से
राह ना कोई अब सूझे,
जब रूठे हैं भाग करम के,
सिवा प्रार्थना क्या करते।
10.
दोनों पलड़े जो सध जाते,
सुन्दर सा संसार बनाते,
रोते हँसते, नचते गाते,
भवसागर के पार उतरते।
11.
इस जीवन का मरम कठिन है,
ना समझे तो क्या करते।
हमने भी कुछ पाप किये हैं,
ना करते तो क्या करते।
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