Thursday, April 26, 2012

पश्चिम से आयी मोहिनी


पश्चिम से आयी मोहिनी

१. 
किस कदर अंधड़ उठे, पछुआ पछाड़ें मारती, 
सागर में यूं लहरें उठें, सारे किनारे तोड़ती. 
२. 
उठ रहे कैसे बवंडर,  स्याह रातें घेरती,  
अपने घर की रोशनी, दहलीज़ पर दम तोड़ती.
३. 
ये पौध क्यारी में उगी, अपनी ज़मीनें छोड़ती,
वन सघन कैसे हरे, गमलों में ये तो फूलती. 
४. 
अब छोड़ वीणावादिनी, उलुकावली को पूजती, 
पश्चिम से आयी मोहिनी, पूरब को कैसी मोहती. 
५.
चीन, भारत या पड़ोसी, सब पे जादू फेंकती,
तोता - मैना ये बना, पिंजरे में सबको डालती. 
६. 
खाती-पीती. मौज की, ज़िंदगी दिन चार की, 
आठों दिशाओं में इन्हीं की, दुन्दुभी अब गूंजती. 
७.
है किसी भी मोल सब, पाने की यह अंधी गली,
डूब जाने की है हसरत, ये मुकम्मल ख़ुदकुशी.
८. 
गर, यही चलता रहा, आकाश वाँणी बोलती, 
धरती ये खूंदी जाएगी, साया हवा में डोलती. 
९. 
तोड़ कर तंद्रा नहीं गर, अब रवानी जागती,
इतिहास की परतें हटा, फिर से गुलामी झांकती.
१०.
 इसके आगे भी जहाँ है, बात है यह गाँठ की,
हमने नहीं, पुरखों कही, है बात कितनी कीमती. 
११. 
चार ही पुरुषार्थ हैं, गिनती के आश्रम चार ही,
बात पुख्ता है यही, सदियों की अजमाई हुई, 
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13-14 APRIL 2012

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