दिन अच्छे बीते होंगे
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
शाम सवेरे नहीं
दोपहर-रात नहीं
एक ही पहचाना चेहरा
दिक् करता होगा.
वैसी ही बातें पिटी-पिटाई
मान-मनौवल वही
बात पर टोका-टोकी
बोलो क्या सोचा तुमने
बोलो - बोलो
क्यों छुपा लिया
पल-पल पर चीर-फाड़ के आदी
सिर पर नहीं खड़े होंगे
दिन अच्छे बीते होंगे.
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
खिड़की का पर्दा खुला हुआ
एकांत निरापद
अंधियारा सा प्यारा छोटा कमरा
अपना-अपना
न्यारा लगता होगा.
सारे छण बस अपने होंगे
कपड़े-लत्ते कंघी-पाउडर
मन-माने साज सजे होंगे
जैसे चाहे रहते होंगे
शीशे में चेहरा देख-देख
अपने पर ही वारे होंगे
दिन अच्छे बीते होंगे.
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
नाचे होंगे कूदे होंगे
गाये होंगे जोर-जोर
घर-आँगन गूँज रहे होंगे
कैसेट से बोल उठे होंगे
आ कर कोई टोकेगा अभी
असमंजस सब छूटे होंगे
दिन अच्छे बीते होंगे.
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
हाँ - ना के वे विकट हिंडोले
डोल-डोल थमते होंगे
बनते-मिटते आवृत्त
उभरता एक बड़ा सा शून्य
क्या अच्छा, क्या बुरा
मान अपमान कहाँ क्या मिला
प्यार बेलौस कहीं क्यों किया
ये प्रश्न नहीं मन में होंगे.
दिन अच्छे बीते होंगे
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
फिर भी, मेरे मृदुल पाश से
क्यों कर बच पाओगे
रीते सोते, सुनते हैं
थोड़े से ही अंतराल में
मीठे पानी से फिर से भर जाते हैं.
कितना ही उन्मुक्त आदमी
मन से हो जाना चाहे
खुल-खुल कर बंधने की चाहत
जीवन भर पाता है
अपने ही एकांत तोड़ने को
ललचाता है.
फिर-फिर लड़ने-भिड़ने की खातिर
आता हूँगा याद,
बात कोई बतलाओ नई
मन ऊब रहा है
दीवारों दरवाज़ों से बातें करते,
नज्में कहते, दिन बीत रहा है.
जाने क्या-क्या सोच-सोच कर
भीतर-भीतर गुन कर
बार-बार सिहरन से भर कर
यह भी सोचा होगा -
दिन भर खट कर
दौड़-धूप कर
सांझ घिरे ठीहे पर आ कर
पाँव पसारे बिस्तर पर
जाले बुनते होंगे.
दिन अच्छे बीते होंगे.
थोड़े ही दिन के लिए सही
मेरे हट जाने से
दिन अच्छे बीते होंगे.
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फरवरी 1986
bahut sunder abhivyakti sir, badhai
ReplyDelete-----indu prakash