Wednesday, June 28, 2023

 थोड़ा थोड़ा पढ़ते पढ़ते
बहुत बहुत खेला करते । 

सीधे सादे ज्यादा रहते,
कभी कभार भटका करते ।

मेले ठेले रास  न आते 
अपने भीतर सिमटे रहते।  

चाकर बन हां-ना करते,
रोटी रोजी पाते रहते।  

थोड़ी पुरा विदी करते,
इधर उधर घूमा करते ।

गुपचुप से रहते रहते,
मरते रहते जीते रहते । 

मनो-गगन में उड़ते उड़ते, 
मन आया लिखते रहते ।

सहज खरहरे कठिन रास्ते
थके बहुत चलते चलते। 

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