थोड़ा थोड़ा पढ़ते पढ़ते
बहुत बहुत खेला करते ।
सीधे सादे ज्यादा रहते,
कभी कभार भटका करते ।
मेले ठेले रास न आते
अपने भीतर सिमटे रहते।
चाकर बन हां-ना करते,
रोटी रोजी पाते रहते।
थोड़ी पुरा विदी करते,
इधर उधर घूमा करते ।
गुपचुप से रहते रहते,
मरते रहते जीते रहते ।
मनो-गगन में उड़ते उड़ते,
मन आया लिखते रहते ।
सहज खरहरे कठिन रास्ते
थके बहुत चलते चलते।
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