बान निराले
कवन अवनि कस कूल किनारे !
अलक झलकि अस मुग्ध निहारे !!
मन मोहै तन सुघर रिझावै !
झिलमिल झिलमिल, बहुरि लुभावै !!
नील गगन तल नीलहि उतरै,
नील धार धरि गहिरे ठरकै !!
बसन अरुण पट पीत सुहावै !
आये वसन्त लै बान निराले !!
-------
No comments:
Post a Comment