जाने क्या ?
बहुत पुराने मिलने वाले,
जाने क्या हो गया उन्हें ?
जाने माने ऊंचे ऊंचे
मिल जाते भूले भटके,
कोरा में भर कर मिलते.
फोन कभी जो कर लेते,
पलट काल करते रहते
मीठी मीठी बातें करते।
सोचा कितने दिन बीत गए,
मुख दर्शन को तरस गए,
क्यूँ ना मिल बैठा जाए।
बोले कहिए कब कहाँ आएं,
दिन ठौर ठिकाना नियत किये,
फिर, जाने क्यों वो ना आए।
एस एम एस और काल किये,
फिर भी पलट नहीं आए
जोहते रहे वो ना आए।
पता नहीं क्या जुर्म किए,
जाने-अनजाने कहाँ किए,
बिना बताए सजा दिए।
कह देते क्यों खफा हुए,
चुप्पी क्यों ऐसी साध लिए,
भीतर कैसी कुढ़न लिए।
अनचीते क्यूँ वार किए,
अनहक ही अवसान किए,
अपने कपाट क्यों बन्द किए।
भूले से क्या सोच लिए,
दुनिया में सरनाम हुए,
बड़े हुए जग जीत लिए।
मन में कुछ ऐसा भाव लिए
मिलें कहीं कुछ मांग न लें,
हाथों में भिक्षा-पात्र लिए।
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