टोना है, टोम्मार है
संझा ढले गुदरी हमें पास की कोल-बस्ती में ले गया, झाड़-फूंक दिखाने।
लपट फेंकती आग में रह-रह कर फेंके जा रहे लोबान से ढेरों धुंआ उठ रहा था।
ओझा आग के पास उकडू बैठ गया। उसकी मुंदी- मुंदी आँखे आत्मलीन हो गईं।
इस इलाके में अस्पताल तक कम ही लोग जाते हैं। कैसा भी दरद हो सलाई का लासा राम बाण। गरम पानी के साथ एक टुकडा निगलते ही दरद कटने लगता है। और कोई बीमारी आई तो समझ लिया देवता उतरे, बरम बाबा चढ़े या चुड़ैल की सवारी है, फिर, बुलाए जाते हैं ओझा, भूत-परेत उतारने के लिए।
ओझा बुदबुदाने लगा -
'टोना है, टोम्मार है ?
लाए हैं, लगाए हैं ?
पेचे है, पचाए है ? ---'
ओझा की मूडी ख़ास अंदाज़ में डोलने लगी।
बीमार की सूरत और ज़र्द पद गई।
ओझा की आवाज़ अचानक एक ठनक के साथ चढ़ चली -
'गली है, धार है ?
नजर-दीठ, मूठ -मसान ?
अजियौरे के है, कि ननिऔरे के है ??
ओझा ठंढे सवाल उछालने लगा, भूत-परेत, देवी-देवता जो भी हो कहाँ से आया ? रास्ते से लग लिया या कि गलियारे से, मसान से आया या किसी ने मूठ चलाया ? आजी के घर से आया या ननिहाल से?
लोबान का धुआं घनेरा हो उठा। ढोल की धमक ऊंची होने लगी। बीमार एकदम मौन हो गया।
ओझा अचानक बमक पड़ा, ढोल की थाप हलकी हो गई -
'जात है ? या परजात है ?
जनाना है कि मरदाना ?
कवन रूप? कवन बदन ?
गौरा-पार्वती क दुहाई -इ- इ-----------
ओझा धरती पर लोटने लगा।
हवा के साथ आग की लपटें लपलपा गईं। भूत-परेत जवाब नहीं दे रहे थे।
फिर, जब बोले तो बीमार के मुंह से - वो अभुआने लगा।
ओझा ने अपने ढब से पूछा - कैसे पिंड छोड़ोगे ? बीमार नाक से मिमियाया -
'घेंटा लेब, ---- मुर्गा लेब, ----- शराब लेब, ------ सीनुर लेब, -
---- चूड़ी लेब, ----- चुनरी लेब ------'
महुआ का सुआद लेते गिरते-पड़ते ओझा ने सब चढ़वाया - घेंटा, मुर्गा, शराब, सिन्दूर, चूड़ी-चुनरी ---- ।
बीमार का अभुआना धीरे धीरे मंद और फिर बंद हो गया।
मान लिया गया कि अब जो भी चढ़ा रहा, भूत-परेत, अलाय-बलाय, सबसे मुक्ति मिली।
बीमारी हलकी भई तो आप ही चली जाएगी, भारी पड़ी तो मरीज़ गया।
दुसरे दिन इस उड़ान की डोरी चुक गई। चोपन से चली एक बस में सवार हो कर बनारस के लिए रवाना हो गए, दोबारा इसी इलाके में लौटने और गुदरी से सुने राजा का बैठका, दुआरा घाट, शिव दुआर, सीता का कोहबर जैसी बहुत सी जगहों को देख पाने की हसरत मन में बसाए।
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पहला अध्याय समाप्त हुआ
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