हिसाब
१. हम खो गए हैं खुद से, खुद की खबर नहीं है
चलते तो चल रहे है, मंज़िल पता नहीं है।
२. यह ज़िदगी का रेला, बढ़ता ही जा रहा है,
यूं ही जो चल पड़ा था, चलता ही जा रहा है।
३. जिनको गले लगाया, पटरी पे चल रहा है,
पहचानता हुआ भी, गैरों सा रह रहा है।
४. वो दोस्त जैसे साया, दुनिया से चल दिया है,
सुधियाँ संजोए उनकी, बेबस सा जी रहा है।
५. खित्ते बहुत से खाली, खाली ही रह गए है,
रीते हुए जो पल में, रीते ही रह गए हैं।
६. ऐसा ही हस्र सबका, उसने ही लिख दिया है,
परवर्दिगार का सब, हिसाब चल रहा है।
७. दूर से जो दिखता, हिम से ढका हुआ है,
अंतर में उसके कितना, धधका उमड़ रहा है।
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चलते तो चल रहे है, मंज़िल पता नहीं है।
२. यह ज़िदगी का रेला, बढ़ता ही जा रहा है,
यूं ही जो चल पड़ा था, चलता ही जा रहा है।
३. जिनको गले लगाया, पटरी पे चल रहा है,
पहचानता हुआ भी, गैरों सा रह रहा है।
४. वो दोस्त जैसे साया, दुनिया से चल दिया है,
सुधियाँ संजोए उनकी, बेबस सा जी रहा है।
५. खित्ते बहुत से खाली, खाली ही रह गए है,
रीते हुए जो पल में, रीते ही रह गए हैं।
६. ऐसा ही हस्र सबका, उसने ही लिख दिया है,
परवर्दिगार का सब, हिसाब चल रहा है।
७. दूर से जो दिखता, हिम से ढका हुआ है,
अंतर में उसके कितना, धधका उमड़ रहा है।
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