बाज़ी
१.
इम्तिहान ऐसा, क्यों ले रहे हो भाई,
इस सिलसिले की हमने, की है नहीं पढ़ाई।
२.
रहते रहे हो अव्वल, आगे की सीट पाई,
अपने हिसाब में ही, पिछली कतार आई।
३.
आलिम हो आप फ़ाज़िल, आली है शान पाई,
हिस्से में अपने लेकिन, आधी अधूरी आई।
४.
तुम हो फनों के माहिर, करते हो रहनुमाई,
हम हैं हुनर से खाली, रहते हैं तमाशाई।
५.
क्यों चाल ये चली है,क्यों फर्द ये बिछाई,
हसरत से देखने की, अपनी है आशनाई।
६.
हम आँख मूँद खेले, वो हाथो हाथ आई,
कंगले के हाथ जैसे, गिन्नी कहीं से आई।
७.
वो जीत-जीत हारी, ओ हार कर जिताई,
है वक्त ने ही ऎसी, वो घूमरी खिलाई।
८.
अपनी गिरह थी खाली, क्यों दांव पर लगाई,
वो जीत गए, फिर भी, जग में हुई हंसाई।
९.
ये रंगो नाज़ वाली, शाही मिज़ाज़ पाई,
कोठी नवाब वाली, ये सब तो खूब पाई।
१०.
ये ज़िंदगी हमारी, है ज़र ज़मीं हमाई !!
जब चल पड़ी सवारी, मूठी भरी न पाई।
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