कच्छड़ो बारामास
गढ़वाल हिमालय की गहरी घाटियों और ऊँचे पहाड़ों के बीच रुद्र प्रयाग से कुछ आगे के एक गाँव में जन्मा एक बच्चा। गोलू गप्पू गोरा प्यारा काली चमकदार आँखों में ढेर सा चंचल कौतूहल। होश संभालने से पहले से ही चौखम्भा के आस पास उठते तैरते बादलों और उगते ढलते सूरज की रोशनी के साथ रंग बदलते हिम-शिखर की सुषमा निहारा करता। चेहरे पर आते जाते रंगों के साथ कैसे कैसे रूप, भाव और प्रकृति का और भी क्या क्या कब उसके अन्तर में खामोशी से समा गये उसे भी पता नहीं चला।
कुछ बड़ा हुआ तो धार-उकाल चढ़ते-उतरते उसकी जिज्ञासा और चंचल मन दूर दूर तक देख समझ आने को कुलांचे मारने लगा। बड़े होने के दौर में देखा करता रोज सबेरे हिम शिखर की ओर धीरे धीरे उठते धुआंरे छितरे बादल । बड़े बूढ़ों बताते वहाँ आंछरियों का भोजन बन रहा है, उनके चूल्हों से उठ रहा है यह धुआँ। नन्हा बालक सोचता बड़ा हो कर एक दिन वहाँ जा कर देखना है इन आंछरियों को । अगले सोपान पर सपनों वाली किशोर वय में हसरत से देखता दूर दूर से आती जाती बसों में भर कर आते सैलानियों और उनके साथ चलने वाले कंडक्टरों को। सोचता करता काश बड़ा हो कर मैं भी कंडक्टर बन पाता, कितनी मौज रहेगी, बिना टिकट दूर दूर तक घूमने को मिलेगा।
बड़ा हो कर वह बच्चा देहरादून के एक कालेज में पढ़ने गया। विनम्र स्वभाव और व्यवहार से सबका दिल ऐसे जीत लेता मानो सारे हिमाल की शीतलता उसमें ही समा गयी हो। जो एक बार उससे मिल लिया उसी का हो कर रह गया। आगे चल कर श्रीनगर, गढ़वाल युनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व पढ़ने लगा। वक्त के साथ कंडक्टर बनने की चाह जेहन से उतर गयी लेकिन घुमक्कड़ी और दुनिया जहान देखने की जन्मजात चाहत ने उसे पुराविद बना दिया। अपनी गहरी जिज्ञासा के चलते आगे चल उस विधा में बड़ा ही दक्ष साबित हुआ ।
उन्नीस सौ इक्यान्न्बे तक बरास्ते इलाहाबाद में गंगा किनारे श्रंगवेर पुर और फिर हरयाना बनावली उत्खनन कैंपो में रमते हुए हरयाना-पंजाब के सर्वेक्षणों का अनुभव बटोर डट गए गुजरात के सर्वेक्षण में। फिर कच्छ के रण के बीचोबीच खडीर में खड़े कोटड़ा (धोलावीरा) के टीले के सर्वे और अभिलेखन में जुट गए। उसके बाद जब वहाँ का उत्खनन चला तो इस ज़माने के योग्यतम पुराविद बिष्ट साहब ने उन्हे ही सबसे भरोसेमंद सहायक बनाया। बिष्ट साहब के बुलावे पर दो हफ्ते वहाँ ठहरने का अवसर पा कर सरसरी तौर पर उनसे मिला लेकिन तब उनकी खासियत का कुछ खास अंदाज़ा नहीं पा सका ।
वहाँ से आने के बाद उस कैंप में लंबे समय तक रह कर आने वालों से बात करने पर पता चलता कि वे उन सबके दिलों में कितने गहरे बस गए हैं। उनसे सुनने को मिलते भगत सिंह जैसी हैट में फबने वाले लंबे कद के सुदर्शनीय काया के मालिक और हर तरह से हुनरमंद, हर समय मुस्कुरा कर मिलने वाले उस नायाब हस्ती के। सर्वे हो या फोटोग्राफी, सेक्शन कटिंग हो या लेयर-मार्किंग, या यूँ कह लीजिए हर काम में माहिर। ये बताना भी कोई नहीं भूलता कि कैसे रात भर कंबल ओढ़ कर लालटेन की रोशनी में धीरे धीरे चाकू और ब्रश चलाते हुए माटी की परतें हटा कर उन्होने हड़प्पा संस्कृति की लिपि में लिखा धोलावीरा का वह लाजवाब ‘साइन बोर्ड’ उजागर किया जैसा आज तक तो कहीं मिला नहीं है। बातों बातों में गढ़वाल के ऊँचे पहाड़ों में जन्मे इन रावत साहब की शोहरत के सौरभ कि मीठी गमक समुद्रपर्यंत लहराने लगी।
रावत जी गुजरात आए तो थे भारतीय पुरातत्त्व के अभियान में लेकिन वहाँ की धरती, आबोहवा और रण की सतह पर दूर दूर तक बिखरे फैले धवल हिम सरीखे नमक के विस्तार ने तो उन्हे ऐसा मोहा कि एक गढ़वाली को पक्का गुजराती बना कर छोड़ा । इतना ही नहीं गुजरात वालों ने उन्हे अपने प्रदेश के पुरातत्व महकमे का सदर बना कर वहीं रोक लिया। उसके बाद जब एक बार फिर से उनसे मिलने का एक मौका मिला तब तक उनका नाम सुन कर ही उनसे मिलने का मन करने लगा था । मिलते ही उनके उजले दाँतों से खुलती मुस्कुराहट और चेहरे पर उभरते अपनत्व के भावों ने उनके हरदिल अज़ीज बनने का राज मुझे भी समझा दिया। तब जा कर पता चला कि संयोग से वे युनिवेर्सिटी के दिनों में अपने एक टीचर डाक्टर नैथानी से मेरे बारे में कुछ कुछ सुनते रहे थे। उस मुलाक़ात में एक बार हमारा जो दोस्ताना बना चलता चल रहा है।
अभी हाल में उनके साथ गुजरात-कच्छ का दौरा करने निकले तो उस इलाक़े में उनके सर्वेक्षण के दिनों के किस्से, पुरास्थलों के विवरण, रीति-रिवाज़ों, परंपराओं, रूखी हवाओं, जबर्दस्त गर्मी और वाकयों की यादों के मजेदार किस्से सुनने को मिले। सुनते सुनते मेरा मन रूमानी ख़यालों में खो गया। सोचने लगा अगर वे यह सब लिख डालें तो हमें भी उनका कुछ मज़ा लूटने का मौका मिल जाए। इस सूखे सपाट इलाक़े की रूखी हवाओं में पसीना बहते हुए अपनी समझ से उस संस्मरण का बड़ा दिलकश नाम भी सुझा दिया – ‘रूखी हवाओं में भीगा किए’।
यहाँ आ कर रावत जी बताने लगे – आप को लगती हैं यहाँ कि हवाएँ रूखी, यहाँ के लोगों को नहीं लगतीं। उनके लिए तो दुनिया भर से निराली और मनभावनी है यहाँ की आब-ओ-हवा। ठीक है ना। एक कहावत यहाँ बहुत कही जाती है –
‘सियाले सोरठ भलो, उनाले गुजरात,
चौमासे वागड भलो, कच्छड़ो बारामास।‘
मतलब शीत ऋतु में सौराष्ट्र, गर्मियों में गुजरात भला लगता है। चौमासे बरसात में वागड का इलाका भला लगता लेकिन कच्छ सुहावना लगता है बारहों महीने।‘
रावत जी से यह कहन सुन कर सतही तौर पर देख कर उठने वाले रूमानी ख़यालों और ज़मीनी हकीकत का फरक साफ समझ में आ गया।
भूल सुधारते हुए उनसे ‘कच्छड़ों बारामास’ नाम से लिखने की गुजारिश की । तभी से इंतिज़ार कर रहा हूँ उनका लिखा पढ़ने के लिए । अब और सबर नहीं कर पा रहा हूँ इसलिए आप सबकी खुली कचहरी में यह दरख्वास्त लगा रहा हूँ कि अपनी साझा फरमाइश से रावत जी के तजुर्बों वाली तिजोरी जल्दी से खुलवाइए।
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Comments
- Rakesh Tewari Yadubirsingh Rawat Parul Tewari Media4Media Network (Hindi), Banaras Hindu University Friends, Rajiv Tewari Rakesh Srivastava Ttishyaa A. Nagarkar Subhash Chandra Yadav
- न्यूज एक्सप्रेस डॉट कॉंम प्रेरणा देने वाले व्यक्तित्व से आपने मुलाकात कराई आपका ढेर सारा आभार।
- Indu Prakash रावत जी अब तो लिख ही डालिये
- Astha Dibyopama Bahut badhiya likha hai sir... :-)
- Yadubirsingh Rawat Sir, Aap kalam ke dhani. Mein kahan aisa hunnarmand? Prayas karunga aapki apeksha tak pahunchne ki. Itna pyar varsane ke liye aabhar.
- Yadubirsingh Rawat Sir, Aap kalam ke dhani. Mein kahan aisa hunnarmand?. Aapki apeksha tak pahunchne ka prayas karunga. Itna pyar varsane ke liye aabhar.
- Achyutanand Jha रावत जी, कभी-कभी कलम उठा लेने से आदमी आतंकवादी नहीं कहलाता !
- Indu Prakash हम प्रतीक्षा कर रहे हैं रावत जी
- Yadubirsingh Rawat मैं तैयारी कर रहा ह्ं । थोड़ी प्रतीक्षा करैं ।
- Bipin Chandra Negi महोदय, आपका धन्यवाद आपने रावत सर से इस विषय चर्चा की , सर, आपके सभी भूतपूर्व प्रशिक्षु छात्रों भी प्रतीक्षारत हैं, इस अनुरोध के साथ कि आप उक्त पुस्तक में विशेषत, उत्खनन के समय स्तरीकरण में आने वाली कठीनाई को उतनीही सरलता व सदो-उदहारण रखेंगे ताकि भावी पीढ़ी भी लाभान्वित हो सके. आशा व शुभकामनाओं केसाथ.
- Anil Kumar Dono Sir ko Pranam, hum intzar karenge
- Rakesh Bhatt Rawtj ab intzar na karao evam Tiwariji ko is suchna ko ham tak pahuchane ke liye dhanyvad.
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